- श्रीलंका
- नेपाल
- पाकिस्तान
- भूटान
Answer :- C पाकिस्तान
निष्कर्ष
दक्षिण एशियाई देशों की स्थापना 8 दिसंबर 1985 में हुई थी इसमें आठ देश आते हैं भारत श्रीलंका पाकिस्तान नेपाल भूटान मालदीव बांग्लादेश और अफगानिस्तान ये सब दक्षिण एशिया में आते हैं
Answer :- C पाकिस्तान
निष्कर्ष
दक्षिण एशियाई देशों की स्थापना 8 दिसंबर 1985 में हुई थी इसमें आठ देश आते हैं भारत श्रीलंका पाकिस्तान नेपाल भूटान मालदीव बांग्लादेश और अफगानिस्तान ये सब दक्षिण एशिया में आते हैं
वह विक्षोप जो अपने आकर में बिना परिवर्तन किये एक निश्चित चाल से माध्यम में आगे की ओर संचरित होती रहती है तरंग या तरंग गति कहलाती है |या हम अपने भाषा में कह सकते हैं कि “विक्षोप के आगे बढ़ने की प्रवृत्ति को तरंग या तरंग गति कहते है |”जैसे : -जब हम तालाब के शांत जल में पत्थर का एक टुकड़ा डालते है तो उसमे विक्षोप उत्पन्न हो जाता है जो अपने आकर में बिना परिवर्तन किये तालाब के किनारे तक एक नियत चाल से आता है |शांत जल में जब पत्थर का टुकड़ा डालते है तो पत्थर के संपर्क में जल के अणु आते है वे पत्थर के साथ ही निचे की ओर चले जाते हैं ,
अतः वहाँ एक गढ्ढा बन जाता है अतः प्रत्यास्थता के गुण के कारण जल सपने अवस्था परिवर्तन का विरोध करता है | अतः जल के अणु गढ्ढे को भरने के लिए चाल देते हैं ,फिर जड़त्वीय के गुण के कारण गढ्ढे को भरने के बाद भी जल के अणु आते रहते है अतः वहाँ एक टापू बन जाता है |फिर प्रत्यास्थता के गुण के कारण अवस्था परिवर्तन का विरोध होता है,
अतः अणु वहा से हटने लगते है और यही प्रक्रिया चलती रहती है इस प्रकार ,विक्षोप आगे की ओर माध्यम में संचारित होती रहती है |और माध्यम के कण अपने ही स्थान पर इधर -उधर गति करते रहते हैं |तरंग के संचरित होने पर केवल ऊर्जा और संवेग का स्थानान्तरण होता है द्रव्य का नहीं |
जैसे : किसी धागे के एक सिरे को दृढ़ आधार से कसकर बाँधकर जब उसके दुसरे सिरे को खीचकर छोड़ते हैं तो उसमे एक विक्षोप उत्पन्न हो जाता है | अतः तरंगो के संचरण के लिए माध्यम की आवश्कता होती है तथा कुछ ऐसी तरंगे हैं जिनके संचरण के लिए माध्यम की कोई आवश्यकता आवश्यकता नहीं होती है |
तरंगो के प्रकार
तरंगे दो प्रकार की होती है
(1) यांत्रिक तरंगे (mechanical waves)
(2) विधुत चुम्बकीय तरंगे (electro magnetic waves)
यांत्रिक तरंग
: वे तरंगे जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है |यांत्रिक तरंगे कहलाती है |
जैसे :जल में उत्पन्न तरंगे ,डोरी में उत्पन्न तरंगे , स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगे |
विधुत चुम्बकीय तरंगे
वे तरंगे जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है विधुत चुम्बकीय तरंगे कहलाती है |
जैसे : प्रकाश की तरंगे |
यांत्रिक तरंगो के प्रकार
ये तरंगे दो प्रकार की होती है |
(1) अनुप्रस्थ तरंगे (Transverse waves)
(2) अनुदैर्ध्य तरंगे (Longitudinal waves )
अनुप्रस्थ तरंगे
(1 ) वे तरंगे जिनके संचरण की दिशा एंव माध्यम के कणों की दिशा एक दुसरे के लम्बवत होती है |अनुप्रस्थ तरंग कहलाती है |
जैसे : रस्सी में उत्पन्न तरंगे ,जल के पृष्ठ पर उत्पन्न तरंग
अनुदैर्ध्य तरंगे
वे तरंगे जिनके संचरण की दिशा एवं माध्यम के कणों के कम्पन की दिशा एक की होती है |अनुदैर्ध्य तरंगे कहलाती है |
जैसे : स्प्रिंग को खीचकर छोड़ने पर उत्पन्न तरंगे ,
अनुदैर्ध्य तरंगे ठोस ,द्रव तथा गैस तीनो में होती है |
तरंगो से सम्बंधित परिभाषाये
1 आवर्त :(Period)) कम्पंकारी कण जब साम्य अवस्था के एक ओर अधिकतम पर पहुचकर साम्य में लौटती है फिर दूसरी ओर अधिकतम पर पहुचकर साम्य में लौटती है इसे 1 आवर्त कहते है |
कम्पंकारी कण साम्य अवस्था के एक ओर जितनी अधिकतम दुरी पर जाती है आयाम कहलाती है |
आवर्तकाल (Periodic time)
1 आवर्त पूरा करने में लगा समय आवर्तकाल कहलाता है |
आवृति : ( Frequency)
कम्पंकारी कण 1 सेकंड में जितना कम्पन्न पूरा करती है आवृति कहलाती है |इसको n से प्रदर्शित करते है
यदि कण द्वारा T सेकंड में किये गये कम्पन्न =1 हो तो
1 सेकंड में किये गये कम्पन्न =1\T होगा
अतः n= 1\T
कम्पनकारी कला :(Phase)
कम्पन्न की कला एक भौतिक राशि है जो कण के स्थिति को प्रदर्शित करता है |
जैसे : किसी कण की कला T\4 है तो इसका अभीप्राय है कि कण साम्य अवस्था के एक ओर अधिकतम पर स्थित है | तथा यदि कण T\2 कला में स्थित हो तो इसका अभिप्राय है कि कण आधा कम्पन्न पूरा करके साम्य अवस्था में है |
तरंग दैर्घ्य : (Wavelength)
एक कम्पन्न पूरा करने में तरंग द्वारा चली गई दुरी को तरंग दैर्घ्य कहते है इसे (λ) से प्रदर्शित करते है |
निष्कर्ष
मै आशा करता हु कि ध्वनि तरंग क्या है ध्वनि के प्रकार एवं विशेषताएं सभी समझ में आ गया होगा |
ऊष्मा : ऊष्मा ऊर्जा का ही एक रूप है जो एक वस्तु से दुसरे वस्तु में तापान्तर के कारण स्थानांतरित होती है |
किसी एक वस्तु से दुसरे वस्तु में तापान्तर के कारण ऊर्जा परिवर्तन को ऊष्मा का संचरण कहते है | ऊष्मा का संचरण निम्न तीन प्रकार से हो सकती है
(1) चालन
(2) संवहन
(3) विकिरण
ऊष्मा का चालन
जब हम किसी ठोस वस्तु को गरम करते है तो ठोस के अणु अपने स्थान को बिना
परिवर्तित किये ऊष्मा को दुसरे अणु तक स्थान्तरित कर देता है अर्थात्ऊष्मा उच्च ताप वाली वस्तु से निम्न ताप वाली वस्तु में स्थानांतरित होती है ऊष्मा के इस स्थानांतरण को ऊष्मा का चालन कहते हैं |
ऊष्मा का संवहन
जब हम किसी तरल पदार्थ को गरम करते हैं तो
तरल के अणु ऊष्मा पाकर अपने स्थान को छोड़ देते है और ठन्डे अणु उनका स्थान ले लेते है ऊष्मा स्थानांतरण के इस क्रिया को ऊष्मा का संवहन कहते है |
ऊष्मा का विकिरण
ऊष्मा संचरण की वह विधि जिसमे माध्यम की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं |
सूर्य से पृथ्वी तक उष्मा उष्मीय विकिरण द्वारा ही पहुती है |
उष्मीय विकिरण के लक्षण
उष्मीय विकिरण के निम्नलिखित लिक्षण पाए जाते हैं |
i. उष्मीय विकिरण प्रकाश के सामान सीधी रेखा में चलती है
ii. उष्मीय विकिरण के लिए माध्यम की कोई आवश्यकता नहीं होती है | अर्थात् ये निर्वात में भी चलती है |
iii. उष्मीय विकिरण को हम देख नहीं सकते परन्तु हम इसे ज्ञानेन्द्रियो के द्वारा अनुभव कर सकते है |
iv. उष्मीय विकिरण प्रकाश की भांति परावर्तन के नियमो का पालन करते हैं |\
v. उष्मीय विकिरण प्रकाश की भांति अपवर्तन के नियमों का पालन करते हैं |
vi. निर्वात ने प्रकाश का चाल 3108 मीटर \सेकंड होता है अतः निर्वात में उष्मीय विकिरण का चाल भी 3 108 मीटर \सेकंड होता है
ऊष्मा का उत्सर्जन (Emission of heat
किसी वस्तु के बाह्य पृष्ठ से प्रति सेकंड उत्सर्जित होने वाले ऊष्मा की मात्रा को ऊष्मा उत्सर्जन की दर कहते हैं |
किसी पृष्ठ से ऊष्मा उत्सर्जन की दर निम्न कारको पर निर्भर करता है
(1) पृष्ट के क्षेत्रफल पर
(2)तापमान पर तथा पृष्ट के प्राकृत पर
ऊष्मा का अवशोषण (Absorption of Heat)
⦁ किसी पृष्ठ द्वारा विकिरण ऊर्जा को अवशोषण करने की क्रिया को ऊष्मा का अवशोषण कहते हैं |
⦁ उत्सर्जन क्षमता तथा अवशोषण क्षमता के अनुप्रयोग
(1)अधिकांशतः गर्मियो में सफ़ेद तथा जाड़ो में रंगीन कपड़े पहनने चाहिए |
(2) खाना पकाने वाले बर्तन की तली को कला रखा जाता है क्योकि काला रंग ऊष्मा को अधिक मात्रा में अवशोषित करता है |
निष्कर्ष
मै आशा करता हु कि ऊष्मा का विकिरण से सम्बंधित जानकारी जैसे की ऊष्मा का चालन,ऊष्मा का संवहन,ऊष्मा का विकिरण,उष्मीय विकिरण के लक्षण ,ऊष्मा का अवशोषण (Absorption of Heat),ऊष्मा का उत्सर्जन (Emission of heatपूर्ण रूप से स्पस्ट हो गया होगा ।
उष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का ही एक रूप है अर्थात् जब किसी निकाय अथवा उसके चारो ओर के परिवेश के बीच तापान्तर में अंतर होता है तो उसके उष्मीय ऊर्जा में भी आदान -प्रदान होता है
अतः हम जानते है कि उच्च ताप वाली वस्तु से निम्न ताप वाली वस्तु में ऊष्मा का आदान प्रदान तब तक होता है जब तक की दोनों वस्तु के ताप बराबर न हो जाय|
दो वस्तुओ के बीच तापान्तर के कारण स्थानांतरित ऊर्जा को उष्मीय ऊर्जा कहते हैं |
उष्मीय ऊर्जा के मात्रक
किसी भी वस्तु के ऊष्मा को ज्ञात करने के लिए कई मात्रको का प्रयोग किया जाता है जिस प्रकार लम्बाई ,द्रव्यमान ,समय आदि भौतिक राशि को मापने के लिए मात्रक की आवश्कता होती है उसी प्रकार उष्मीय ऊर्जा को मापने के लिए मात्रक की आवश्यकता होती है अतः उष्मीय ऊर्जा को मापने के लिए कैलोरी का उपयोग किया जाता है |
अतः 1 ग्राम जल का ताप 10C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को 1 कैलोरी कहते हैं |
|कई प्रयोगों के आधार पर यह देखा गया है कि जल प्रत्येक 10C(10०C से 11०C अथवा 80०C से 81०C) ताप बढ़ाने पर बराबर ऊष्मा नहीं होता अतः वैज्ञानिको ने यह निर्णय किया कि 1 ग्राम जल का ताप 14०C से 15०C तक बढ़ाने लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को 1 कैलोरी कहते हैं|
इसी प्रकार ,
ऊष्मा को किलोकैलोरी में भी व्यक्त किया जाता है अतः 1 किलोग्राम जल का ताप 14०C से 15०C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को 1 किलोकैलोरी कहते हैं |
अतः 1 किलोकैलोरी = 1000 कैलोरी
1 किलोकैलोरी = 103 कैलोरी
ऊष्मा का SI मात्रक
चूँकि ऊष्मा ऊर्जा ही रूप है अतः SI पद्धति में ऊष्मा को ऊर्जा के मात्रक जूल (Joule) में व्यक्त करते हैं
जूल नामक वैज्ञानिक अपने प्रयोगों के आधार पर उष्मीय ऊर्जा के मात्रक और कैलोरी के बीच सम्बन्ध स्थापित किया कि 4.2 जूल ऊर्जा 1 कैलोरी ऊष्मा के तुल्य होता है |
1 कैलोरी =4.18 जूल =4.2 जूल (लगभग )
1 किलोकैलोरी =4.18 *103 जूल
अतः 1 जूल= 1\4.18 कैलोरी
ऊष्मा धारिता (Heat Capacity)
हम जानते हैं कि किसी भी वस्तु में ऊष्मा देने पर वस्तु के ताप में वृद्धि होती है तथा वस्तु के ताप में वृद्धि दी गई ऊष्मा के अनुक्रमानुपती होती है
अतः यदि वस्तु को दी गई ऊष्मा Q हो तथा ताप में वृद्धि डेल्टा t हो तोQ अ डेल्टा t Q = W. डेल्टा t
जहाँ W एक समानुपाती नियतांक है जिसे वस्तु की ऊष्मा धारिता कहते हैं
यदि डेल्टा t =10C हो तो Q = W
अतः किसी वस्तु का ताप 1०C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को वस्तु की ऊष्मा धारिता कहते हैं |
अतः ऊष्मा धारिता का मात्रक जूल\ डिग्री सेल्सियस होता है
विशिष्ट उष्मा
प्रयोगों के आधार पर यह देखा गया है कि जब किसी पदार्थ का ताप बढ़ाया जाता है तो आवश्यक ऊष्मा कि मात्रा निम्न कारको पर निर्भर करता है –
(1) पदार्थ के द्रव्यमान पर
Q समानुपाती m
(2) पदार्थ के ताप में वृद्धि पर
Q समानुपाती डेल्टा t
अतः Q समानुपाती mडेल्टा t या Q = sm *डेल्टा t
जहाँ s एक नियतांक है जिसे पदार्थ कि विशिष्ट ऊष्मा धारिता अथवा विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं |
यदि m = 1 किलोग्राम
तथा डेल्टा t = 1०C हो तो
Q = s होगा
अतः 1 किलोग्राम द्रव्यमान का ताप 1०C , बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं |
निष्कर्ष
मै आशा करता हु की उष्मीय ऊर्जा से आप क्या समझते है ? ऊष्मीय ऊर्जा का आधुनिक तथा अंतरराष्ट्रीय मात्रक क्या है? ताप संतुलन क्या है? ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? ऊष्मा के माप को क्या कहते हैं? समझ में आ गया होगा यदि कुछ आपको समझ में न आये तो आप comment कर सकते है
ताप किसी वस्तु का वह भौतिक गुण है जिससे यह पता चलता है कि वस्तु कितनी गर्म है या ठण्ड अर्थात् किसी वस्तु के उष्णता (hotness) अथवा शीतलता (coldness) होने की दर को वस्तु का ताप कहते है |
किसी भी दो वस्तुओ के बीच ऊष्मा का प्रवाह तापान्तर के कारण होता है यदि दो वस्तुओ के बीच ऊष्मा का प्रवाह हो रहा हो तो जो वस्तु ऊष्मा देती है उसका ताप उच्चतर (high temperature) होता है | तथा जो वस्तु ऊष्मा हो ग्रहण करती है उसका ताप निम्नतर होता है | अर्थात ऊष्मा उच्च ताप वाली वस्तु से निम्न वाली वस्तु में स्थानांतरित होती है | यदि ऊष्मा स्थानांतरण के समय दोनों वस्तुओ के ताप बराबर हो तो कहा जाता है कि दी हुई वस्तु तापीय साम्य (Thermal equilibrium) में है |
ताप मापन से क्या समझते है ?
साधारणतः हम दो वस्तुओ को छूकर बता सकते है कि कौन सी वस्तु अधिक गर्म है ,अर्थात् किसका ताप ऊँचा है | परन्तु यदि इसके तापो में अंतर बहुत कम है तो हम इसको छूकर नहीं बता सकते है इसके अतिरिक्त हम किसी वस्तु को हाथो से छू कर हम उसकी सही जानकारी नहीं प्राप्त कर सकते | अतः ताप को मापने के लिए तापमापी का उपयोग करते है |
वह उपकरण जिसमे पदार्थ के ताप मापक गुण का प्रयोग कर किसी वस्तु के ताप को मापा जाता है तापमापी कहलाता है | ताप को मापने के लिए हम सामान्यतः थर्मामीटर का उपयोग करते है |
ताप के पैमाना
कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो तीनो अवस्थाओ (ठोस ,द्रव ,गैस) में पाए जाते हैं जैसे :जल एक ऐसा पदार्थ है जो बर्फ (ठोस ) जल (द्रव) तथा गैस (वाष्प ) तीनो अवस्थाओ में पाए जाते हैं | सामान्यतः ताप को मापने के लिए चार निर्मित किये गए हैं |
(1) सेल्सियस (celsius)
(2)फ़ारेनहाइट (Fahrenheit)
(3) रयूमेर(re००umer)
(4) केल्विन (kelvin)
सेल्सियस
इसका पूरा नाम सेंटीग्रेड पैमाना है celsius पैमाना में जल के हिमांक बिंदु को 00C तथा क्वथनांक बिंदु को 1000C माना जाता है |
फ़ारेनहाइट
इस पैमाने में जल के हिमांक बिंदु को 320F तथा क्वथनांक बिंदु को 2120 F माना जाता है तथा इनके बीच के अंतराल (212 -32 ) को 180 भागो में बता गया है |
परम शून्य ताप
परम शून्य’ (ऐब्सोल्यूट जीरो टेम्परेचर) न्यूनतम सम्भव ताप है तथा इससे कम कोई ताप संभव नही है। इस ताप पर पदार्थ के अणुओं की गति शून्य हो जाती है। इसका मान -273 डिग्री सेन्टीग्रेड होता हैं।
निष्कर्ष
आप सभी को ताप से सम्बंधित जानकारी जैसे की ताप क्या है इसकी परिभाषा क्या है एव इसकी क्या प्रयोग होता है समझ में आ गया होगा यदि कुछ लिखने को बाकि हो तो आप comment कर सकते है
हम अपने जीवन में प्रतिदिन ऊर्जा शब्द का प्रयोग करते है |और उसके अर्थ की समझते है कोइ भी मजदुर दिनभर शारीरिक कार्य करता है |और वह शाम को थक जाने पर उसकी ऊर्जा कम हो जाती है | जिसको वह भोजन करके ,आराम करके पुनः प्राप्त कर लेता है |अक्सर हम कहते है कि एक ग्लास अनार या संतरे के रस में बहुत ऊर्जा होती है | विमर पड़ जाने पर हम तनिको का उपयोग करके ऊर्जा को प्राप्त करते है | जिससे हमे पुनः कार्य करने की क्षमता प्राप्त होती है |
“जब किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है तो कहा जाता है की us वस्तु के पास ऊर्जा है|”
अतः कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है |
किसी मशीन की ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा कहते है
ऊर्जा के कितने मात्रक है?
(1) गतिज ऊर्जा (kinetic energy)
(2) स्थितिज ऊर्जा (potential energy)
गतिज ऊर्जा से आप क्या समझते हैं?
किसी वस्तु में उसके गति के कारण कार्य करने की क्षमता को us वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते है |
माना कोई वस्तु u वेग से गति कर रहा है वस्तु पर एक बल F नकारात्मक दिशा में आरोपित करने पर वेग धीरे -धीरे घटने लगता है अतः अंत में वस्तु रुक जाती है अर्थात् v=0 यदि मंडान aहो तो गति के तीसरे समीकरण से
v2 =u2 -2as
0 =u2 -2as
2as=u2 ———–(1)
वस्तु पर बल F आरोपित करने के बाद वस्तु S दुरी तय करके रुकी है |
अतः वस्तु का विस्थापन =S
अतःकिया गया कार्य =बल *विस्थापन
W=F.S
गति के दुसरे समीकरण से F=m .a
अतः W=m.a.s= m.(as )
W=m.u2\2
W=1\2 mu2
कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है |
अतः ऊर्जा =1\2 mu2
अतः किसी वस्तु पर किया गया कार्य us वस्तु में ऊर्जा परिवर्तन के बराबर होता है |
अर्थात् वस्तु पर कार्य करने से वस्तु के ऊर्जा में परिवर्तन होता है| इसे हम कार्य ऊर्जा प्रमेय कहते है |
अतः वस्तु की गतिज ऊर्जा =1\2 mu2
स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं?
किसी वस्तु में उसकी विशेष अवस्था अथवा स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता को वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते है |यदि m द्रव्यमान की वस्तु पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर स्थित हो तो स्थितिज ऊर्जा =भर .ऊँचाई
u =mgh
निष्कर्ष
आप सभी को ऊर्जा से सम्बंधित प्रश्न जैसे की ऊर्जा से आप क्या समझते हैं,ऊर्जा किसे कहते हैं मात्रक ,बिमा विशेसताए समझ में आ गया होगा ।
किसी व्यक्ति वस्तु अथवा मशीन द्वारा प्रति सेकंड में किये गये कार्य को व्यक्ति वस्तु अथवा मशीन का शक्ति कहते है | इसे p से व्यक्त करते है |
“कार्य करने की समय दर को शक्ति कहते है |”
यदि किसी मशीन द्वारा t सेकंड में किया गया कार्य w हो तो इकाई समय में किया गया कार्य w\t होगा |
अतः मशीन की शक्ति (p) कार्य\समय =w\t
अतः p =w\t,
शक्ति का मात्रक
शक्ति का मात्रक जुल\सेकंड होता है | तथा शक्ति का मात्रक वाट भी होता है
अतः 1 वाट =1 जुल\1 सेकंड
यदि कोई मशीन 1 सेकंड में 1 जुल कार्य करे तो us मशीन की शक्ति 1 वाट होगी |
शक्ति का अन्य मात्रक
1 किलोवाट =103 वाट
1 मेगावाट =103 किलोवाट =106 वाट
मशीन की शक्ति को अश्व शक्ति में भी व्यक्ति किया जाता है |
1 अश्व शक्ति =746 वाट
अतः 1 घोड़ा ,1 सेकंड में 746 जुल कार्य करता है |
शक्ति की विमा
शक्ति की विमा =कार्य की विमा \समय की विमा
=[ML2 T-2 ]\ [T]= [ML2 T-3]
निष्कर्ष
मै आशा करता हु की शक्ति से सम्बंधित जानकारिया जैसे की शक्ति क्या है ,शक्ति का मात्रक,शक्ति का अन्य मात्रक,शक्ति का विमा सभी समझ में आ गया होगा ।
कार्य (Work) : सामान्य भाषा में कार्य का अर्थ किसी क्रिया से होता है |जैसे जब कोइ व्यक्ति पढ़ता है ,लिखता है ,खाना पकाता है ,आदि सामान्य भाषा में यह कहा जाता है कि व्यक्ति कार्य कर रहा है |परन्तु भौताकी के क्षेत्र में कार्य को निम्न प्रकार परिभाषित किया जाता है |
किसी भौतिक वस्तु पर बल लगाकर वस्तु को बल के दिशा में विस्थापित करने की क्रिया को कार्य कहते है |”
अतः यदि किसी वस्तु पर बल F आरोपित करने पर वस्तु का बल के दिशा में विस्थापन s हो तो कार्य =बल *बल के दिशा में विस्थापन W=F.s
कार्य =बल *बल के दिशा में विस्थापन W=F.s
यदि वस्तु का विस्थापन बल के दिशा में न होकर बल के दिशा से θ कोण पर हो तो कार्य =बल *बल के दिशा में विस्थापन (विस्थापन s का बल के दिशा में घटक s.Cosθ
अतः W=F.SCosθ
कार्य का मात्रक
कार्य का मात्रक =बल का मात्रक *विस्थापन का मात्रक
=न्यूटन *मीटर
नोट : कार्य का मात्रक जुल भी होता है
अतः 1 जुल =1 न्यूटन *मीटर
1 जुल
यदि किसी वस्तु पर 1 न्यूटन का बल आरोपित करने पर वस्तु का बल के दिशा में विस्थापन 1 मीटर हो तो वस्तु पर किया गया कार्य 1 जुल होता है |
M.K.S पद्धति में कार्य का मात्रक
M.K.S पद्धति में कार्य का मात्रक जुल होता है और C.G.S पद्धति में कार्य का मात्रक अर्ग होता है |
1 जुल =1O7 अर्ग
कार्य की विमा
बल की विमा *विस्थापन की विमा =[MLT-2] [L] =[ML2T-2 ]
कार्य एक अदिश राशि है अतः इसको व्यक्त करने के लिए दिशा की आवश्यकता नहीं होती है |
नोट
यदि विस्थापन s बल F की दिशा में हो तो किया गया कार्य धनात्मक होता है तथा विस्थापन s बल F की विपरीत दिशा में हो तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है
इस लेख में हम गुरुत्वाकर्षण से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करेंगे जो निम्न है |
हम अपने जीवन में बहुत सी घटनाओ का अनुभव करते है |
यदि कोई भी वस्तु ऊपर ले जाकर स्वतंत्रता पूर्वक निचे छोड़ दी जाती है तो वह वस्तु पृथ्वी की ओर गिरने लगती है |किसी पेड़ के फल डालियो से अलग होकर पृथ्वी पर गिरते है |
संसार में किसी भी वस्तु को ऊपर की ओर फेकने पर निचे की ओर पृथ्वी पर ही गिरती है | ऐसा क्यों ?इस तथ्य की जानकारी वैज्ञानिक न्यूटन ने बताया था
जब उन्होंने एक सेब के पेड़ के निचे बैठे थे तो पेड़ से एक सेब अलग होकर पृथ्वी पर आ गिरा तब उनके मन में विचार आया की पृथ्वी पर आकर्षण बल है जो किसी भी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है
वास्तव में आकाशीय पिंडो जैसे – ग्रह ,चन्द्रमा आदि की गतियो का अध्यनन करके बताया कि ब्रह्माण्ड में सभी वस्तु एक -दुसरे को अपनी ओर आकर्षित करती है |
गुरुत्वाकर्षण बल
दो द्रव्यात्मक वस्तु एक दुसरे को जिस बल से अपनी ओर आकर्षित करती है ,us बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं | दो वस्तुओ के बीच लगने वाले इस आकर्षण के गुण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) कहते है |
न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम
न्यूटन ने किन्ही दो पिंडो के बीच गुरुत्वाकर्षण बल सम्बंधित नियम प्रस्तुत किये जिसे न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी नियम कहते है |
इस नियम के अनुसार
” यदि दो द्रव्यात्मक वस्तु एक दुसरे से निश्चित दुरी पर स्थित होते है तो उनके बीच एक बल लगता है जो दोनों द्रव्यमानो के गुणनफल के समानुपाती होता है तथा दोनों द्रव्यमानो के बीच के दुरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है |”
जब दो द्रव्यात्मक वस्तु m1 तथा m2 हो तथा उनके बीच की दुरी r हो तो लगने वाला बल निम्न कारको पर निर्भर करता है |
F समानुपाती m1 .m2
Fसमानुपाती 1\r2
अब ,F समानुपाती m1 m2\ r2
F=Gm1 .m2 \r2
जहाँ G एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी कणों के लिए सभी स्थानों पर तथा सभी दिशाओ में एक सामान होता है |
G का मान 6.67 *10-11 न्यूटन .मीटर 2 .किग्रा -2 होता है |
गुरुत्वीय क्षेत्र
हम जानते है की द्रव्यात्मक वस्तुओ के बीच लगने वाला बल दुरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है |अतः जैसे – जैसे हम पृथ्वी तल के ऊपर जाते है दुरी बढती जाती है अतः बल घटती जाती है अतः पृथ्वी तथा पृथ्वी के चारो ओर के वे क्षेत्र जिसमे किसी वस्तु को रखने पर वह आकर्षण बल का अनुभव करता हो गुरुत्वीय क्षेत्र कहलाता है |
गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता
इकाई द्रव्यमान के वस्तु पर गुरुत्वीय क्षेत्र के भीतर लगने वाले गुरुत्वीय बल को us बिंदु पर गुरुत्वीय क्षेत्र तीव्रता कहते है |
यदि m द्रव्यमान के वस्तु पर लगने वाला गुरुत्वीय बल F हो तो इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला गुरुत्वी बल =F\m अतः गुरुत्वीय क्षेत्र की तीव्रता I=f\m
इसका मात्रक न्यूटन \किग्रा होता है |
गुरुत्व
पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर आरोपित गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्व कहते है |
गुरुत्वीय त्वरण
पृथ्वी प्रत्येक वस्तु पर एक बल आरोपित करती है अतः बल के इस प्रभाव से वस्तु में त्वरण उत्पन्न हो जाता है चूँकि यह त्वरण पृथ्वी के बल लगाने के कारण होता है अतः इसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं इसे g से निरुपित करते है |
यदि किसी पिंड p का द्रव्यमान m पृथ्वी का द्रव्यमान Me तथा पृथ्वी के केंद्र O से पिंड की दुरी d हो तो पिंड पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल F=G.m.Me\d2
यदि इस बल से पिंड में उत्पन्न त्वरण g हो तो ,त्वरण =बल\पिंड का द्रव्यमान
या g = F\m
अथवा g =G.Me\d2
अब यदि पृथ्वी तल से पिंड की ऊँचाई h हो तथा पृथ्वी की औसत त्रिज्या Re हो तो r =Re +h
अब : g =G.Me (Re +h )2
गुरुत्वीय त्वरण ‘g ‘तथा सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक ‘G’ में अन्तर :
गुरुत्वीय त्वरण
पृथ्वी प्रत्येक वस्तु पर एक बल आरोपित करती है अतः बल के इस प्रभाव से वस्तु में त्वरण उत्पन्न हो जाता है चूँकि यह त्वरण पृथ्वी के बल लगाने के कारण होता है अतः इसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं इसे g से निरुपित करते है |
⦁ g का SI मात्रक मीटर.सेकंड-2 होता है |
⦁ g का मान सभी स्थानों पर अलग -अलग होता है |
⦁ g एक सदिश राशि है |
गुरुत्वाकर्षण नियतांक ‘G’
⦁ इकाई दुरी पर स्थित इकाई द्रव्यमान के दो पिंडो के बीच कार्य करने वाले गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते है | इसे G से व्यक्त करते है |
G का SI मात्रक न्यूटन .किग्रा-2 होता है|
G का मान सभी स्थानों पर एक सामान होता है |
यदि वस्तु के द्रव्यमान बराबर हो परंतु एक वस्तु अधिक वेग से चल रही हो तथा दूसरी वस्तु कम वेग से चल रही हो तो, अधिक वेग से चलने वाले वस्तु को रोकने के लिए अधिक बल लगाना पड़ेगा तथा कम वेग से चलने वाली वस्तु पर कम बल लगाना पड़ेगा | अतः गतिशील वस्तु को रोकने के लिए आवश्यक बल वस्तु के वेग पर भी निर्भर करता है |
अधिक द्रव्यमान वाली गतिशील वस्तु को रोकने में कम द्रव्यमान वाली गतिशील वस्तु की अपेक्षा अधिक बल लगाना पड़ेगा अतः किसीगतिशील वस्तु को रोकने के लिए आवश्यक बल वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करता है | अतः किसी पिंड अथवा वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को संवेग कहते है | संवेग को P व्यक्त करते है
अतः संवेग = द्रव्यमान *वेग
अथवा p =m *v
संवेग का SIपद्धति में मात्रक =द्रव्यमान का मात्रक * वेग का मात्रक
=किलोग्राम मीटर \सेकंड -1 संवेग एक सदिश राशि है जिसकी दिशा वेग की दिशा होती है | बल तथा संवेग में सम्बन्ध गति के दुसरे नियम से f=ma
परन्तु गति के पहले समीकरण से a =v-u\del (t )
अतः F=m.(v- u)\del (t)
F=m v-m u\del (t)
mv- mu=वस्तु का अंतिम वेग -प्राम्भिक वेग =संवेग परिवर्तन(del p )
F=(del p \del t )
संवेग संरक्षण का नियम
यदि किसी निकाय पर आरोपित बाह्य बल शून्य हो तो us निकाय का संवेग संरक्षित रहता है | इसे ही संवेग संरक्षण का नियम कहते है |
यदि निकाय पर आरोपित बाह्य बल शून्य हो तो निकाय का सम्पूर्ण संवेग =0
Example
Example उस बल की गणना कीजिये जो एक कर का वेग विराम से 5 सेकंड में 15 मीटर\सेकंड -1
कर दे उस कर का द्रव्यमान 750 किग्रा हो |
solution; कर का द्रव्यमान=750 किग्रा
कर का प्राम्भिक वेग =(u )=0
तथा कर का अंतिम वेग (v)=15 मीटर\सेकंड -1
समय (t )=5 सेकंड
F= m *a
a=v- u \t
a=15-0\5=3 मीटर\सेकंड -1
अब : (F)= m *a
F=750*3=2250 न्यूटन